धर्म,संस्कृति एवं प्रकृति
अपने कर्मों का सम्यक् निर्वहन करने से आत्म कल्याण, राष्ट्र कल्याण के साथ लोक कल्याण भी हो जाता है। "धर्म जागरण मंच" का उद्देश्य गंगा जैसे पवित्र और इतना सारगर्भित है जो अपनी संस्कृति और प्रकृति की रक्षा करते हुए मानव के साथ राष्ट्र का सर्वांगीण विकास कर सकें।
विशिष्ट ज्ञान विज्ञान के माध्यम से समस्त मानव जाति के सर्वांगीण विकास के लिए उत्कृष्ट शिक्षा का प्रचार प्रसार होता रहे जिससे स्वस्थ, श्रेष्ठ व सभ्य समाज का निर्माण हो सके। स्वधर्म, राष्ट्रधर्म इत्यादि सभी धर्मों के निर्वहन के साथ आपसी भाईचारा स्नेह सौहार्द के साथ युवाओं का आध्यात्मिक, शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक व नैतिक विकास हो सके ऐसे नागरिकों से ही राष्ट्र गौरवान्वित होता है। समाज में सुख, शांति आपसी सद्भाव, विश्वास, सदाचार, शिक्षा, स्वस्थ एवं आदर्श नागरिक गुणों की स्थापना हो। समाज के साधन हीन व्यक्तियों के जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं भोजन, शिक्षा, आवास की व्यवस्था हो तथा शिक्षित बेरोजगारों को उनके योग्यता के अनुरूप तकनीकी, व्यवहारिक व आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान कर उन्हें रोजगार का अवसर उपलब्ध कराया जाए। जनहित के उक्त कार्य को संचालित करने तथा उससे अधिकाधिक लाभ प्रदान करने के लिए विभिन्न विधाओं में समाज को शिक्षित किए जाने की आवश्यकता को देखते हुए विभिन्न संस्थाओं व विभिन्न समितियों का गठन किया जाना आवश्यक पाकर इसकी संपूर्ण व्यवस्था के लिए कल्याणकारी "धर्म जागरण मंच" न्यास/ट्रस्ट की स्थापना की गई जिससे हमारी प्रकृति एवं संस्कृति की रक्षा हो सके। "वसुधैव कुटुंबकम्" के आधार पर विश्वकल्याणार्थ
सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यंतु, मा कश्चित् दु:ख भाग भवेत्।। के उद्देश्य से न्यास मंडल भविष्य में निर्मित होने वाली प्रबंध समिति तथा संस्थान से संबंधित सभी सदस्य धर्म के साथ उद्देश्य की पूर्ति के लिए कार्य करते रहेंगे।
संस्थान के नाम एवं लोगो में संपूर्ण गीता, रामायण, वेद, पुराण इत्यादि सब समाहित है यह लोगों स्वयं में एक दिव्य यंत्र है अतः इसे संस्थान से मंगवाकर इसको घर या ऑफिस में स्थापित करने, गले में रखने या दर्शन मात्र से शुभ ऊर्जा (पुण्य) की प्राप्ति होती है। इस संस्थान का आदर्श वाक्य "यतो धर्मस्ततो जय:" है अर्थात जहां धर्म है वहां विजय निश्चित है। इस दृढ़ संकल्प के साथ हम अपने उद्देश्यों को पूर्ण करने में अवश्य सफल होंगे संभव हो सके तो स्वधर्म का पालन करते हुए आप भी लोक कल्याण के उद्देश्य की पूर्ति हेतु केवल तन, मन से सहयोग करें संभव हो तो धन से भी करें क्योंकि शास्त्रों में कहा है "धनात् धर्मं तत: सुखम्" अर्थात धन है तो कुछ धर्म करें, फिर सुख प्राप्त होगा ऐसा अगर न कर सके तो केवल मन से मंगल कामनाएं प्रेषित करें जिससे हम अपने मंगलकारी उद्देश्य में सफल हो सके।
।। जय श्री राम ।।
।।जयतु श्री जगदम्बिके।।
भवदीय-
ज्ञानगुरु डॉ. धनेश मणि त्रिपाठी राष्ट्रीय अध्यक्ष- धर्म जागरण मंच