कर्म कितना भी अच्छा हो शास्त्र अनुकूल न होने पर न भौतिक नाही आध्यात्मिक और नाही सद्गति किसी भी प्रकार का सुखद परिणाम नहीं होता। यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः l न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम् ll भावार्थ - जो शास्त्रों के आदेशों की अवहेलना करता है और मनमाने ढंग से कार्य करता है, उसे न तो सिद्धि, न सुख, न ही परमगति की प्राप्ति हो पाती है।